ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
श्रीगणेश मन्त्र ॥ ॐ नमो सिद्ध-विनायकाय सर्व-कार्य-कर्त्रे सर्व-विघ्न-प्रशमनाय सर्व-राज्य-वश्य-करणाय सर्व-जन-सर्व-स्त्री-पुरुष-आकर्षणाय श्रीं ॐ स्वाहा ॥ विधि- नित्य-कर्म से निवृत्त होकर उक्त मन्त्र का निश्चित संख्या में नित्य १ से १० माला जप करे। बाद में जब घर से निकले, तब अपने अभीष्ट कार्य का चिन्तन करे। इससे अभीष्ट कार्व सुगमता से पूरे हो जाते हैं। अथ शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय ॥ 1 ॥ मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय । मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय ॥ 2 ॥ शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय । श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय ॥ 3 ॥ वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय । चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय ॥ 4 ॥ यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय । दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय ॥ 5 ॥ पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥ 6 ॥ श्री राम स्तुति श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं | कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुन्दरं | पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरं || भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकंदनं | रघुनंद आनंदकंद कोशलचंद दशरथ-नन्दनं || सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग बिभूषणं | आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरदूषणं || इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं | मम ह्रदय-कंज निवास कुरु, कामादी खलदल-गंजनं || मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो | करुना निधन सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो || एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली | तुलसी भवानिही पूजि पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली || |
भावार्थ: उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।
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